Wednesday 24 October 2012

मेर प्रिय शिक्षक

हमारा जीवन ज्ञान बिना अधुरा हे। हमें ज्ञान पाने के लिए आलस्य छोड़कर पढना  होता हे। पहले के ज़माने में शिष्य आश्रम में पढने जाया करते थे। आश्रम में गुरु पढ़ते थे। और पढाई ख़त्म हने के बाद गुरु को गुरु दक्षिणा दी जाती थी।आज कल के आधुनिक युग में गुरु दक्षिणा की जगह पैसे (फी) ली जाती हे। और आश्रम की जगह  में पाठशाला में पठते हें। वहा हमें सब सुविधाए मिलती हें।

वेसे तो मेरी पाठशाला में सारे शिक्षक मेरे प्रिय हे। उसमेसे सबसे प्रिये मीणा मेम हे। वे हमारे शाला के आचार्य हे। वे हमारा सामाजिक ज्ञान का विषय लेते हे। वे बहुत अछी तरह पठते ते हे। वह क्रोधी हे अगर हम उनका कहा न मने तो वे डटते हे वर्ना वे बहुत अच्छे हे। वे इस बार पहेली बार हमारा विषय ले रही हे।

वेसे मेरे वर्ग में कई शिक्षक आते हे। वे सभी बचो को अपने बचो की तरह पठाते हे। मेरे वर्ग में आते सभी शिक्षक मुझे पसंद हे।


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